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Saturday, January 26, 2008

वह आंखें

अनगिनत ख़्वाबों को पिरोती वह आंखें।
कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब खोजती वह आंखें।
ना जाने ज़िंदगी से क्या उम्मीद लगाए बैठी हैं वह आंखें।
धड़कन थम जाये एक नज़र भर के जो देख लें वह आंखें।
मगर खामोशी कि रजाई ओढे हुए हैं वह आंखें।
अब टोह इंतज़ार है कि कब चुप्पी खोलेंगी वह आंखें।

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