हाँ मैंने ज़िंदगी को छू के देखा है
छोटे से कमरे में हजार सपनों को खुली सांस लेते देखा है
एक आम सी सुबह को ना जाने कैसे खास होते देखा है
हाँ मैंने ज़िंदगी को छू के देखा है
बंद आंखों से सपनें तोह बहुत देखे थे
पर खुली आँख के सपनें को
हकीकत होते भी देखा है
हाँ मैंने ज़िंदगी को छू के देखा है
कई सालोंकी मायूसी को
दबे पाओं गायब होते देखा है
और छुपी हुई मुस्कराहट को
पल भर में ठहाका बनते देखा है
हाँ मैंने ज़िंदगी को छू के देखा है