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Saturday, March 15, 2008

स्पर्श

कुछ पल तेरे साथ के
कुछ पल अटूट विश्वास के
तेरा स्पर्श लगता है मानो
तपती रेत पर शीतल जल
इस स्वप्न से उस स्वप्न तक
इस श्वास से उस श्वास तक
ले जाना पकड़ के ऊँगली
मेरी कल्पनाओं की सीमा
को बना के मिटाना
और फ़िर लफ्ज़ बनके
मेरे मस्तिष्क में आना
जवाबों के सवाल और सवालों के जवाब

देकर भूल जाना
स्पर्श, खामोश स्पर्श...



2 comments:

रंजू भाटिया said...

स्पर्श, खामोश स्पर्श...
यही याद रह जाता है ता उम्र सुन्दर रचना लगी आपकी यह

Piyush Aggarwal said...

बहुत बहुत शुक्रिया होसला बढाने के लिए..आशा है आपको मेरी अन्य रचनाएँ भी पसंद आएंगी :-)