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Sunday, April 13, 2008

शांताराम की अमर कथा - १

आख़िर वह दिन आ ही गया जिसका मुझे कबसे इंतज़ार था। आज मेरी मुलाकात हुई उस शक्स से जिसे दुनिया शांताराम के नामे से जानती है। अगले कुछ दिन मैं इन्ही महाशय के साथ गुजारने वाला हूँ। शुरू होता है आप लोगों का असली मुम्बई दर्शन। शांताराम किसी सामान्य व्यक्ति की कहानी नहीं है बल्कि यह एक बहुत असाधारण इंसान की कहानी है जिसे परिस्थिति एक ऐसे अजनबी शहर में ले आती हैं जहाँ वह अपने खौफनाक बीते अस्तित्व को शहर की भूलभुलैया में खो बैठता है और सौंप देता है अपने आपको समय के हाथ में। पर वह एक बात भूल जाता है की यहाँ उसकी तकदीर समय से जादा इस शहर के हाथों में है। जी हाँ मुम्बई, सपनों की वह नगरी जहाँ किस्मत भी किसी का साथ देने से पहले दो बार सोचती है।

शांताराम से मिलने के कुछ ही पलों में मुझे ऐसा एहसास हुआ की मानो एक अनकहा रिश्ता जुड़ गया हो उसके साथ। अगले कुछ दिनों में उसकी नज़रों से मैं मुम्बई को देखूँगा और शायद इसी दौरान मैं पा सकूं वह सुकून जिसकी मुझे कबसे तलाश थी।

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