Pages

Tuesday, August 12, 2008

सिर्फ़ एक ख्वाब

सिर्फ़ एक ख्वाब देखना चाहता हूँ,
दिल टूटने का डर है, और दिल को भी यह ख़बर है,
फिर भी उम्मीद के आसमान में,
अपने सपनों के पंख फैलाना चाहता हूँ,
सिर्फ़ एक ख्वाब ही तोह देखना चाहता हूँ

बेजुबान हुआ तोह क्या, इन चाँद बची धडकनों से,
हर दिल तक अपना एहसास पहुँचाना चाहता हूँ,
आख़िर, एक ख्वाब ही तोह देखना चाहता हूँ।

कुछ लम्हे और लम्हों में गुज़रती ज़िन्दगी
हर गुज़रते लम्हे में अपनी पूरी ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ ,
बस एक ख्वाब ही तोह देखना चाहता हूँ।

दिन, महीने और ऐसे ही कई साल गुजर गए,
एक पल के लिए ही सही,
इस वक्त को अपनी मिटटी की गुल्लक में बांधना चाहता हूँ,
एक मासूम सा ख्वाब ही तोह देखना चाहता हूँ।


1 comment:

संगीता पुरी said...

उम्मीद लगाए रखें। बहुत अच्छी कविता।