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Tuesday, July 28, 2009

हा हा ही ही क्लब


न जाने क्यूँ आज सुबह ही मुझे यह ख्याल आया की ज़िन्दगी की भाग दौड़ में हम लोगों ने हसना कम कर दिया है। एक समय हुआ करता था जब सुबह सवेरे आप किसी से मिलो तोह हर इंसान मुस्कुरा के आपका अभिनन्दन करता था। पर शायद इस घिच पिच होती ज़िन्दगी में सब कुछ गड़बड़ होता जा रहा है। खैर फ़िक्र नाट, जब RGB हैं तोह क्या गम है ;)

आपकी भागती हुई ज़िन्दगी में थोड़ा सा गुदगुदी भरा ब्रेक लगाने आ रहा है सोशल मीडिया का पहला " हा हा ही ही क्लब " अब आप सोच रहे होंगे की यह हा हा ही ही क्लब क्या करेगा? हुजुर घबराते क्यूँ हैं, हसने के यहाँ पैसे नहीं लगेंगे बल्कि आप जितना हसेंगे हम आपको दो तीन हसी मुफ्त में ही देंगे। आपकी हर सुबह को और खुशनुमा बनाने के लिए हम लेंगे कुछ पुराने लतीफे जो आज भी उतने ही नए हैं जितने की पहले थे। जैसे की सरदार संता सिंह और बनता सिंह के अजीबो गरीब किस्से जो आज भी हर किसी किसी की जुबां पे हैं। कुछ ऐसे ही किरदारों को मैं हर सुबह आपके नाश्ते में परोसने की कोशिश करूंगा। तोह चलिए दिल खोल के हसने को तैयार हो जाईये।

Saturday, July 25, 2009

बादल



परिंदों की उड़ान के पीछे से दौड़ते हुए बादल।
अपने अस्तित्व की लडाई लड़ने को मजबूर हैं हर पल।
बरसना चाहते हैं वे भी इस मायूसी के आलम में।
बहाना चाहते हैं बारिश के आंसू तपिश के इस मंज़र में।


यह वोह हैं जिनकी गरज पे मौसम बदल जाते हैं,
यह वोह हैं जिनकी मुस्कराहट पे इन्द्रधनुष खिल जाते हैं
चमक जाएं तोह बिजली भी शरमाये,
मचल जायें तोह पर्वत का दिल भी थर्राए।

ढूँढ लो जो ढूँढ पाओ इसमें,
शायद वोह पुराने शेर- खरगोश वहीँ छुपे बैठे हों,
कुछ रंग बिरंगे गुब्बारे भी मिल सकते हैं,
कटी पतंगों में uljhe हुए ।
न जाने क्या क्या छुपा rakha है,
इन रुई के कारखानों में।
चाँद की जवानी दबी राखी है,
इन्ही मखमली मैदानों में।

यूँ तोह जवानी के दिनों में,
उसने भी खूब यात्रा की होगी।
पाँच महासागरों से लेकर,
गगन भेदी पहाडों से टक्कर ली होगी।
पर अब वोह बादल थोड़ा बूढा हो चला है।
शायद ज़िन्दगी रुपी हवा के थपेडों ने,
उसे भी शांत कर दिया है।
अब वोह भी थोड़ा ठहराव चाहता है।
अब वोह भी थोड़ा समय अपनों के साथ
बिताना चाहता है।
उन्ही खेत और जंगलों के साथ,
जिन्हें कभी ख़ुद को काट कर उसने सींचा था।

अरे बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला,
मौसम कुछ ख़राब होता दिखा रहा है।
लगता है हवा का तेज़ झोंका नजदीक ही है।
पर शायद इस बार वोह श्वेत बादल इन थपेडों को न झेल पाए।

Thursday, July 23, 2009

चोरी


अक्सर कहते हैं की परिस्थितियां आदमी को अपराधी बना देती हैं। ऐसी ही एक घटना मैं आज बताने जा रहा हूँ।


एक रात जब मैं कवि सम्मलेन से घर आया तोह मैं दरवाज़े को अपने स्वागत में खुला पाया।
अन्दर किसी कवि की कल्पना या बेरोजगार के सपनों की तरह सारा सामान बिखरा पड़ा था,
और मैं हूट हुए कवि की तरह खड़ा था।
क्या क्या गिनूं सामान बहुत कुछ चला गया था श्रीमान।
बस एक ट्रांजिस्टर में बची थी थोडी सी ज्योति,
जो घरघर रहा था मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोटी।

अगले दिन चोरी की ख़बर पाते ही लोग भारी संख्या में आने लगे,
मेरे गम में अपना गम ग़लत करने के लिए ठूस ठूस के खाने लगे।
चोरी हुई सो हुई, चाय , पट्टी और चीनी पे पड़ने लगा डाका,
और दो ही घंटों में खाली dabbon ने मेरा मुँह टांका।
मेरी समस्या को देख कर मेरे पड़ोसी शर्मा जी ने ऐसा पड़ोसी धर्मं निभाया,
मुझसे पैसे लिए, चाय, पट्टी और चीनी के साथ समोसे भी ले आया।

चाय पिलाते पिलाते, चोरी का किस्सा बताते बताते,
सुबह से शाम हो गई, गला बैठ गया और आवाज़ खो गई,
पिचहत्तर वे आदमी को जब मैंने बताया,
तोह गले में दो ही लफ्ज़ बाकी रह गए थे, हो गई !

अगले दिन मैंने दरवाज़े जितना बड़ा एक बोर्ड बनवाया,
और उसे दरवाज़े पे ही लगवाया, जिसपे लिखवाया : " प्यारे भाइयों एवं उनकी बहनों, कल रात जब में घर आया, तोह मैं पाया की मेरे यहाँ चोरी हो गई है , चोर काफ़ी सामान ले गए, मुझको गम और आपको खुशी दे गए। कृपया अपनी खुशी हमारे साथ शेयर न करें। अन्दर आकर चाय मांगकर शर्मिंदा न करें। आपका एह्दार्शनाभिलाशी।
उस बोर्ड को पढ़कर एक सज्जन व्यक्ति अन्दर आया। हमने गला सहलाते हुए उसे बोर्ड दिखाया, बोला भाई साहब बोर्ड मत दिखाओ, हुई कैसे यह बताओ। "

एक पत्रकार मित्र ने तोह पूरी कर दी बर्बादी,
तीसरे दिन यह ख़बर अखबार में छपवा दी,
अब क्या था, दूर दूर से आने लगे, जाने अनजाने , यार रिश्तेदार
एक दूर के रिश्ते की मौसी बोली - " आज तोह मेरा व्रत है, आज तोह मैं सिर्फ़ फल और मेवे ही कहूंगी, और जब तक चोर पकड़ा नहीं जाएगा तुझे छोड़ के नहीं जाउंगी


कुछ देर बाद एक तांत्रिक अन्दर आया,
मुझे देख बड़े ही कुटिल ढंग से मुस्कुराया,
" बोला बच्चा , हमने तंत्र विद्या से पता लगाया है, चोर उत्तर दिशा से आया है। बारह दिन का अनुष्ठान करना पड़ेगा, बारह सौ रुपये का खर्चा आएगा , तेरहवे दिन चोर ख़ुद सामन दे जाएगा। " हमारे कुछ कहे बिना ही woh baith गया, kambakht पहले दिन ही charsau रुपये aith गया।


दस दिन बाद हमने हिसाब लगाया,
चोरी तोह ढाई हज़ार की हुई थी पर उसका हाल बताने में
पाँच हज़ार का खर्चा आया।

उस दिन मैंने एक कठिन और एतिहासिक फ़ैसला कर लिया।
अपने अन्दर ढेर साड़ी इच्छा शक्ति भर ली
और अपने प्यारे पड़ोसी शर्मा जी के यहाँ चोरी कर ली।

अब मेरी जेब में पड़ा यह आखिरी दस का नोट किसी से नहीं डरेगा,
क्यूंकि मुझे पता है की मोहल्ले की पिछली चोरी किसने की, और अगली कौन करेगा।