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Saturday, August 01, 2009

शुक्रिया कहिये!


न रुकिए, न सोचिये,
बस कहिये, अजी अब कहिये भी।
जी हाँ! सिर्फ़ शुक्रिया कहिये।

चलिए मैं ही शुरुवात किए देता हूँ।
शुक्रिया!
उस खूबसूरत सुबह का,
जिसने मुझे अंधेरे और उजाले में अन्तर करना सिखाया।
उन छोटी गलियों का शुक्रिया जिन्होंने
मुस्कुराते हुए मेरे बचपन का हाथ
जवानी को सौंप दिया।

शुक्रिया उस कड़क चाय के प्याले का,
जिसने मेरी पहली नौकरी दिलवाई।
और हाँ! उस पल का भी शुक्रिया,
जब मैंने माँ की गोद में पहली बार आँखें खोली।
शुक्रिया उस मेज़बान का शुक्रिया,
जिसने मेरे बुरे वक्त में मुझे अपना आशियाँ दिया।
शुक्रिया ज़िन्दगी के हर उस लम्हे का
जिसमें मैंने कई जिंदगियों को जिया।
उस नन्हे आंसू का भी शुक्रिया,
जिसने मेरे कई ग़मों को अपने में समां लिया।
शुक्रिया!

तहे दिल से शुक्रिया,
उस अजनबी का जिसने मेरे रस्ते को
ख़्वाबों से भी हसीं बना दिया।
पर सवाल है की माँ तेरा शुक्रिया मैं कैसे करूँ ?
कैसे करूँ मैं शुक्रिया मैं उन अनगिनत पलों का,
जब मेरे नन्ही उँगलियों को छूने के लिए,
तू सारी कायनात से जूझ रही थी।
तेरी उस हर हँसी का
जो मेरी ज़िन्दगी का मकसद बन गई।
माँ जानता हूँ मैं सिर्फ़ एक इंसान ही हूँ,
जो बात एक बेटा न कह सका,
शायद एक इंसान अपने भगवान् से कह सके।
शुक्रिया!

2 comments:

sharjeel said...

Nice !!

Piyush Aggarwal said...

shukriya sharjeel! :)