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Wednesday, April 21, 2010

है हर ज़िन्दगी का बस यही तो तराना

हर पल में चलना और बस चलते रहना,
गिरना, संभालना और उठ खड़े होना,
लड़ना, नष्ट होना और लुप्त होकर फिर जन्म लेना,
थकना, थक के चूर होना और फिर शुरू हो जाना,
रो रो के हसना और हस्ते हस्ते रोना,
खोना, मिलना, और फिर गुमशुदा हो जाना,
डूबना, उभारना और फिर डूब जाना,
रूठे को मनाना और मना के रूठ जाना,
कभी कुछ कहना और कभी कुछ कह पाना,
ख्वाबों में जगना और जागते हुए सो जाना,
कुछ के साथ चलना और कुछ से बिछड़ जाना,
दीवानों की संगत में यूँ घुलना और मिलना,
यूँ अंजान राहों में फिर भटक जाना,
हो आये जहाँ से, है वहीँ पर तो जाना,
है हर ज़िन्दगी का बस यही तो तराना
है हर ज़िन्दगी का बस यही तो तराना।।
है हर ज़िन्दगी का बस यही तो तराना।।।

4 comments:

अंजना said...

बढिया..

स्वाति said...

बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! मुझे यह पसंद आया! :)

संजय भास्‍कर said...

कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

Piyush Aggarwal said...

बहुत बहुत शुक्रिया आप सबका इस सराहना के लिए :)