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Friday, June 04, 2010

उधेड़बुन - एक आधुनिक शहर

आइये! स्वागत है आपका इस शहर में जिसका नाम है उधेड़बुन। यह भारत के तमाम उन छोटे बड़े शहरों, खासकर उनमहानगरों से अलग है जहाँ तेज़ी से भागती हुई ज़िन्दगी और इंसान के बीच का फासला दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। पर खासबात यह है की उधेड़बुन शहर का निर्माण भी उन्ही महानगरों की आपा-धापी भरे जीवन शैली की वजह से हुआ है। ऐसा नहीं हैकी छोटे शेहेर से लोग उधेड़बुन शहर नहीं आते, अक्सर वे नज़दीक के महानगर पहले जाते हैं और बाद में खुदबखुद ही उधेड़बुनपहुँच जाते हैं।

बढती हुई आबादी का असर उधेड़बुन पे इतना पड़ा है की महानगरों की सारी आबादी उधेड़बुन शिफ्ट होना चाहती है। उधेड़बुन में रहना यहाँ के बाशिंदों की ज़रूरत सी हो गयी है। यह जानते हुए भी की यहाँ पर रहना किसी भी अकलमन्द इंसान के लिएकीमती समय की बर्बादी के सिवा कुछ भी नहीं फिर भी हर इंसान उधेड़बुन शहर में रहने कभी न कभी ज़रूर आता है। बड़ी बड़ीसडकें, इमारतें , शापिंग माल या रंगीन बाज़ार, उधेड़बुन शहर में हर वह चीज़ मौजूद है जो किसी साधारण व्यक्ति को भी भटकासकती है। पर भटकना तो उधेड़बुन में फेशन माना जाता है और फिर यदि आप भटक गए तो घबराने की ज़रूरत नहीं, आपके पास मोबाइल नामक यन्त्र होना चाहिए जो कहीं से भी आपको दोबारा महानगर की आपा धापी में पटक देगा।

उधेड़बुन में रहने वाले लोग अकसर एक दुसरे से बात करने से कतराते हैं। क्यूँ? पता नहीं। शायद हर कोई अपने उधडे हुए कोबुनने की उधेड़बुन में लगा हुआ है। पर इसमें उनकी कोई गलती नहीं, इस सामाजिक उधेड़बुन का हल हमारे नेताओं के पास भीनहीं है। वे तो खुद उधेड़बुन शहर में अपनी सत्ता बचाने की उधेड़बुन में लगे हुए हैं। यह वक्त ही कुछ ऐसा है, व्यापारियों को पैसाकमाने की उधेड़बुन, छात्रों को परीक्षा में पास होने की उधेड़बुन, नौकरी पेशा को नौकरी सँभालने की उधेड़बुन। अब तो लगता हैकी उधेड़बुन को भारत देश की राजधानी बना दें तो कुछ गलत न होगा। खैर अब मैं आपको आपकी उधेड़बुन में छोड़ रहा हूँ, क्या करूँ, मेरी उधेड़बुन मेरा इंतज़ार कर रही है। फिर मिलेंगे किसी और उधेड़बुन के बीच और सोचेंगे इस शहर से निकलने का उपाय।

आपका अपना
पियूष

5 comments:

माधव( Madhav) said...

wah wah

Piyush Aggarwal said...

shukriya madhav! :)

Amit Tyagi said...

main udhedbun mein hoon ki kya kahoon !! Darasal, sabhi isi udhedun namak shahr ke waasi ho gaye hain !!
Uttam !!

Atul said...

Very contemporary and contextual. Loved reading it dude.

SKT said...

कई दिनों से उधेड़बुन में था, सो आप तक नहीं पहुँच पाया। ...अच्छी बुनी है आपने अपनी उधेड़!!