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Tuesday, August 21, 2012

खर्चासुर का कहर

कौन कहता है की असुरों, दैत्य और दानवों का समय जा चूका है? अजी किसी मध्य वर्ग के परिवार से पूछकर तो देखिये, सभी की जुबान पर एक ही असुर का आतंक मिलेगा. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ  आज के समय का प्रलय रुपी खर्चासुर की , जिसके भय से मध्य वर्ग तो क्या, उच्च वर्ग के लोग भी कापना शुरू हो गए हैं.

खर्चासुर कैसा दिखता है, कहाँ से आता है, कुछ नहीं कह सकते और अब हमारी सरकार भी इस असुर से अपना पल्ला झाड चुकी है। खर्चासुर के बारे में पूछने से ही हमारे वित्त मंत्री भी बगुले झांकते फिरते हैं तो मुसीबत में मदद की उम्मीद कम ही मालूम पड़ती है।

अब एक आम इंसान खर्चासुर से लड़ने के लिए कर भी क्या सकता है, खासकर की जब उसने घर की सारी महिलाओं पे अपना वशीकरण मंत्र फूँक रखा हो। वैसे पिछले कई साल से मैं देख रहा हूँ, यह दानव महीने की एक तारीख को आता है और अपना कहर फैला के चला जाता है। फिर बाकी के बचे दिन किसी तरह इस दैत्य से बचने के रास्ते खोजने पड़ते हैं।

खर्चासुर की सेना सब जगह फैली हुई है, क्रेडिट कार्ड वाले तो इस चतुरंगिनी सेना के सबसे खतरनाक सैनिक हैं, उसके पीछे आपके पास के लोकल माल मालिक जो हर हफ्ते किसी न किसी तरह आपके बटुए में हाथ घुसाने में कामयाब हो जाते हैं, कभी नयी फिल्म के बहाने, कभी साडी सूट पर लगी सेल, कभी बच्चों के नए झूले और कुछ न मिले तो कमबख्त मेक डोनाल्ड का बर्गर जान खाने को आ जाता है।

गर्मी, बारिश या सर्दी, जो भी मौसम हो इस दैत्य की शक्ति तो बस बढती ही जा रही है। इस दैत्य का सबसे बड़े दोस्त बिजली के बिल और पेट्रोल हैं जिसने इसकी शक्ति को चार गुना बढ़ा दिया है। महीने दर महीने यह खर्चासुर के नाखून की धार और पेनी करते जा रहे हैं।

कभी कभी लगता है, हम जीवन में अपने लिए नहीं बल्कि खर्चासुर की तिजोरी भरने के लिए कमा रहे हैं। इस पर टैक्स, उस पर टैक्स, बात बात पर टैक्स, टैक्स पर टैक्स, आखिर इस दैत्य का अंत कहाँ है?

यह लेख लिखते हुए मुझे पीपली लाइव का वो लोक गीत याद आ रहा है, सखी सैय्यां तो खूब ही कामात हैं मेहेंगाई डायन खाए जात है।

  

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